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फैक्ट्री में बॉयलर किस दिशा में होने चाहिए ?

फैक्ट्री में बॉयलर किस दिशा में होने चाहिए ?

व्यापारी वर्ग (बिजनेसमैन) फैक्ट्री का निर्माण अपनी आर्थिक समृद्धि के लिए करते हैं। इसलिए फैक्ट्री का निर्माण करते समय वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों का पर्याप्त ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि फैक्ट्रियों के मालिकों द्वारा फैक्ट्री की इमारत, मशीनों, बायलर के निर्माण और उपकरणों पर एक बहुत बड़ी रकम व्यय की जाती है। इसके अतिरिक्त वे उत्पादन में सर्वोत्तम परिणाम पाने की इच्छा, अच्छी प्रबंधन व्यवस्था करने , दुर्घटनाओं , हड़तालों तथा तालाबंदी कम-से-कम करने, अग्नि से होने वाले विनाश से बचने के लिए अच्छी धनराशि खर्च करते है। ताकि लाभ कमा सकें।

वास्तु के सिद्धांतों का पालन किया जाए, तो अधिक उत्पादन, बिक्री में वृद्धि, और फैक्ट्री के कामकाज सुचारू रुप से चलते रहते हैं। तथा कामकाज में कोई समस्या नहीं होती है। उद्योग जो भी हो, वास्तु के सिद्धांत मोटे तौर पर समान रहते हैं और फैक्ट्री का निर्माण करते समय इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए।

फैक्ट्री का निर्माण, फैक्ट्री में बॉयलर स्थापित करना, फैक्ट्री में उत्पादों को बनाना और उन्हें ग्राहकों को भेजना। यह कार्य लगभग सभी फैक्ट्रियों में एक सामान होते हैं। परंतु अलग-अलग फैक्ट्रियों में उनकी गतिविधियां भिन्न-भिन्न हो सकती है। और वास्तु शास्त्र के व्यापक सिद्धांत सार्वभौमिक रूप से सभी फैक्ट्रियों में लागू होते हैं।

फैक्ट्री में बॉयलर किस दिशा में होने चाहिए ?

फैक्ट्री में बिजली और अग्नि से चलने वाले उपकरण (बॉयलर) और फैक्ट्री के ढ़ाचे का निर्माण वास्तु अनुसार ही करना चाहिए। बॉयलर से जुड़ी चीजों का चयन करना बहुत महत्वपूर्ण कार्य होता है। इस पूरी सावधानी के साथ वास्तुपूरक सिद्धांतों के आधार पर ही करना चाहिए।

बॉयलर क्या होता है ?

फैक्ट्री में बॉयलर और अन्य फैक्ट्री के इलैक्ट्रानिक उपचार किस दिशा में होना चाहिए ?

वास्तु शास्त्र के अनुसार चिमनी या बॉलयर का स्थान फैक्ट्री में निर्धारित करने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। क्योंकि उसे अग्नि तत्व की जगह पर बनाना होगा। यह स्थान फैक्ट्री की दक्षिण-पूर्व में होगा। यह स्थान अग्निदेव का होता है यहां पर आग से संबंधित उपकरण स्थापित करने पर फैक्ट्री में लाभ की संभावना बनी रहती है।

  • बॉयलर तथा चिमनी को सदैव फैक्ट्री के आग्नेय कोण में लगाना चाहिए। इस स्थान की ऊंचाई दक्षिण-पश्चिम से अधिक होनी चाहिए। तथा आग्नेय कोण की ऊचाई फैक्ट्री में बने ओवरहेड टैंक से भी अधिक होनी चाहिए।
  • फैक्ट्री में स्थापित होने वाले अन्य उपकरण जिनका संबंध अग्नि से होता है। जैसे ट्रांसफॉर्मर, जनरेटर, बॉयलर, भट्ठियां या अन्य इंजन जिसमें आग का प्रयोग होता है। उनको केवल दक्षिणी-पूर्व दिशा में होने चाहिए।
  • आग लगने पर भागने का जीना (फायर स्टेयर ) दक्षिण, पश्चिम अथवा दक्षिण-पश्चिम की तरफ होना चाहिए। पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की ओर सीधा या घुमाव क्लाकवाइज होना चाहिए।
  • वजन करने की मशीनें, खराद मशीनें और फैक्ट्री के भारी विद्युत उपकरण दक्षिण, पूर्व व दक्षिण ओर दक्षिण-पश्चिम की तरफ रखनी चाहिए। उत्तर, पूर्व या उत्तर पूर्व की तरफ कभी न रखें।
  • फैक्ट्री में जिस जगह बॉलयर स्थापित करने जा रहें हैं। वह जगह बिल्कुल समतल होनी चाहिए और उस जगह पर टीले या फिर ऊंचे नीचे गड्डे नही होने चाहिए।
  • बॉलयर के आसपास कुंआ, ट्यूबेल, बोरबेल नही होने चाहिए। अगर जरुरत पड़े तो बहुत छोटी पानी की टंकी रखी जा सकती हैै। उसे जमीन पर नही रखना चाहिए । उसे आप प्लेटफार्म के ऊपर रखें।
  • फीडिंग करते समय बॉलयर का मुंह पूर्व व उत्तर की तरफ होना चाहिए।
  • भट्टी व बॉलयर पूर्व की दीवार पर नही होने चाहिए । वह दक्षिण दीवार पर होने चाहिए।
  • भट्टी व बॉलयर कोने से चिपक कर नही होने चाहिए।
  • चिमनी कभी भी पूर्व की तरफ नही होना चाहिए। दक्षिण की तरफ होनी चाहिए। दक्षिण मध्य में लगा सकते हैं पर अग्निकोण में लगाना पड़े तो दक्षिण-पश्चिम दिशा को और ऊँचा करना चाहिए।
  • भट्टी व बॉलयर को हमेशा लाल रंग करना चाहिए।
  • भट्टी व बॉलयर के शेड को फैक्ट्री बिल्डिंग से नही जोड़ना चाहिए। उससे फैक्ट्री का आकार बदल जाता है।
  • कोयला व अन्य ज्वलनशील हमेशा दक्षिण की तरफ स्टोर करने चाहिए।
  • भट्टी व बॉलयर को चलाने वाले का मुंह उत्तर-पूर्व में होना चाहिए।
  • भट्टी व बॉलयर की शुरुआत शुभ मुहूर्त में ही होना चाहिए।

फैक्ट्री में बॉयलर उचित दिशा और उचित स्थान में न स्थापित होने पर कौन-कौन से हानि हो सकती है -

यदि फैक्ट्री में प्रयोग होने वाली मशीनरी और उपकरण वास्तु सिद्धातों के अनुसार स्थापित नही हैं तो फैक्ट्री में निम्नलिखित परेशानियों को सामना करना पडता है।

  • फैक्ट्री में माल का उत्पादन ठीक से नही होगा।
  • फैक्ट्री में मजदूर हडताल व तालाबंदी की नौबत आ सकती है।
  • फैक्ट्री में माल की बिक्री नही होगी।
  • फैक्ट्री के उपकरणों में खराबी बनी रहेगी ।
  • माल की ब्रांडिंग प्रभावित होगी।
  • कर्मचारी वर्ग में असंतोष की भावना होगी।
  • कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
  • अगर दक्षिण पश्चिम अग्निकोण से नीचा है तो कर्मचारी वर्ग पर बहुत खर्च होता है व बरकत नही होती है।

फैक्ट्री के अग्नि कोण (दक्षिण दक्षिण-पूर्व) में चिमनी , भट्टी, इलैक्ट्रानिक मीटर आदि का स्थान होना चाहिए। फैक्ट्री का यह स्थान प्रणोदक ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। जिसके परिणाम स्वरुप अग्नि तत्व सामान रहता है। और फैक्ट्री में एनर्जी का संचालन सुचारु रुप से होता है। इस स्थान का स्वामी शुक्र व देवता अग्नि होते हैं। जो धन और वैभव को बनाए रखने में फैक्ट्री मालिक की मदद करते हैं। इसके प्रभाव से फैक्ट्री मालिक उत्पादों से धन अर्जित करने का मार्ग निरंतर खुला रहता है।

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)