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फैक्ट्री में मशीनरी व सामान कहां होना चाहिए ?

फैक्ट्री निर्माण का मुख्य उद्देश्य व्यापार स्थापपित कर लाभ अर्जित करना होता है। परंतु सोचिए यदि यह कार्य ही पूर्ण नही हुआ । तो फिर फैक्ट्री के संचालन में कहीं न कहीं बाधाएं तो आवश्य ही आयेंगी। ऐसे में ध्यान देना होगा कि फैक्ट्री में मशीनें कहां पर हैं, कच्चा माल किस दिशा में रखा है। तैयार माल किस कोण में रखा है। यह सब बातें फैक्ट्री संचालन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होते हैं। मशीन व सामान गलत जगह पर रखने से कार्य में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इन सभी स्थानों व दिशाओं का सही चयन न होने पर तैयार माल बिकता नही है और आर्डर भी नही आते हैं। इसका असर मार्केटिंग तथा ब्रांड वैल्य पर पर देखने को मिलता है। फैक्ट्री के माल के प्रति लोगों की विश्वसनीयता (Reliability) भी नही प्राप्त होती है।

फैक्ट्री या फिर किसी कारखाने का निर्माण करना व्यवसायिक कार्यों के अंतर्गत आता है। फैक्ट्री एक ऐसी संरचना होती है। जहां पर मशीनों और उपकरणों को परस्पर वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार ही फैक्ट्री की भूमि में स्थापित किया जाता है। फैक्ट्री के कुछ मूल तत्व होते है। जैसे कि पानी की व्यवस्था, फैक्ट्री में मजदूर वर्ग के रहने की व्यवस्था एवं प्रमुख देवता की प्रतिष्ठा करना अनिवार्य होता है।

वास्तु नियमों का पालन करते हुए किसी फैक्ट्री या फिर कारखाने का निर्माण या फिर किसी व्यापार केन्द्र इत्यादि बनाए जाने से मालिक खुश और समृद्ध होता है। इसके लिए कई प्रमाण है। वास्तु के अनुसार फैक्ट्री का निर्माण मालिक को आर्थिक रुप से समृद्ध बनाता है। उसको आर्थिक हानि से बचाता है। वह वास्तु अनुसार फैक्ट्री के निर्माण से मालिक स्वस्थ रहता है और खुशियों का प्राप्त करता है। उसके बच्चे जीवन में ऊंचे उठते है और वह व्यापार को आगे ले जाने में सक्षम होते है।

फैक्ट्री की मुख्य मशीनरी कहां पर होनी चाहिए ?

फैक्ट्री के निर्माण के समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। कि माल निर्माण की प्रक्रिया घडी की दिशा में क्लॉकवाइज होनी चाहिए। इसकी शुरुआत ईशान कोण से होकर और वायव्य कोण तक माल निर्माल का कार्य स्टेप बाई स्टेप होना चाहिए। जैसे ईशान कोण में कुँआ, बोर, ट्यूबले या पानी का भण्डारण और तैयार माल की पैकेजिंग कर यहां से ही उसे सप्लाई इत्यादि के प्रबंध कर सकते है। इसके बाद अग्निकोण में चिमनी, जरनेटर , ट्रांसफार्मर या फिर विद्युत से सभी सभी प्रकार के फैक्ट्री के दक्षिण-पूर्व में करना चाहिए। फैक्ट्री की भारी मशीनरी को दक्षिण दिशा में स्थापित करना चाहिए। और कच्चे माल का स्टोरेज सदैव फैक्ट्री के नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम का मध्य स्थान) में करना चाहिए। फैक्ट्री की उत्तर-पश्चिम दिशा में फिनिश गुड्स, डीजल का स्टॉक, स्कैप रुम (अपशिष्ट पदार्थ या कचरा ) वायव्य कोण में रखना चाहिए।

क्रमवार तरीके से जानें फैक्ट्री निर्माण में कौन सी दिशा में क्या स्थापित करें -

हर काम को करने के एक तरीका होता है । उसी प्रकार फैक्ट्री को वास्तु के अनुरुप व्यवस्थित करने के कुछ वास्तु के खास नियम है। इन नियमों के तहत फैक्ट्री की मशीनरी लगाने से उद्योग ऊंची सफलता प्राप्त करने में सफल होते हैं।

वास्तु के मत के अनुसार फैक्ट्री की उत्तर पूर्व दिशा को खाली रखना चाहिए। क्योंकि यदि फैक्ट्री का उत्तरपूर्व भाग खाली रहेगा और भारहीन होगा तो फैक्ट्री में शुभ ऊर्जा का संचार होता रहेगा। वास्तु शास्त्र कहता है। कि नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) पृथ्वी तत्व का गुण विद्यमान होता है। जिससे इस दिशा में भारी सामान रखना चाहिए। इस दिशा को भार युक्त बनाने से उद्योग को स्थायित्व मिलता है और डिस्ट्रीब्युटर्स व मार्केटिंग पर फैक्ट्री का वर्चस्व स्थापित होता है।

  • फैक्ट्री की मुख्य इमारत व फैक्ट्री के ब्रह्म स्थान में कोई मशीनरी, कॉलम या बीम नही होना चाहिए। क्योंकि इसका संबंध आकाश तत्व से होता है। और यह फैक्ट्री का मध्य स्थान होता है। अर्थात मध्य स्थान। यहां पर आप यदि वजनी सामान रखते है। तो फैक्ट्री का ह्दय स्थान प्रभावित हो जाएंगा । और संबंधित उद्योग के बड़े बड़े आर्डर व फैक्ट्री के महत्वपूर्ण कार्यों में बाधाएं आने लगेगी। जिससे उद्योग को सफलता प्राप्त करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
  • उत्तर से लेकर पूर्व तक पूरा जल तत्व होता है। वास्तु के हिसाब से यहां पर निर्मित माल की पैकेजिंग कर उसे मार्केट में भेजने का काम करना चाहिए।
  • फैक्ट्री व इंडस्ट्रीजिस की दक्षिण-पश्चिम दिशा के बीच में फैक्ट्री का ऑफिस और स्टोरेजकी व्यवस्था करनी चाहिए।
  • फैक्ट्री के उत्तर-पश्चिम में भी आप लेबर रुम बना सकते है।और उत्तर उत्तर-पश्चिम में टैंक बनाना सकते हैं।
  • फैक्ट्री में भारी मशीनें दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में लगानी चाहिए। यह दिशा भारी मशीने स्थापित करने के उद्देश्य से सर्वोत्तम मानी गई है। इससे उद्योग को बल व स्थायीत्व प्रदान होता है। क्योंकि कि इस दिशा में स्थापित मशीनें अपने पूर्व कौशल का प्रदर्शन करती हैं।
  • फैक्ट्री के ब्रह्म स्थान पर रखा भारी सामान या भारी मशीनरी फैक्ट्री के मालिक के ऊपर आर्थिक दवाब बना सकता सकता है।
  • फैक्ट्री के नैऋत्य कोण में कच्चे माल के स्टोरेज के रुम बनाना चाहिए। और जैसे ही माल निर्मित हो जाये तो उसे तैयार माल (फिनिस गुड्स) को वायव्य कोण में रख देना चाहिए। और फिर ईशान कोण में पैकेजिंग करने से माल जल्दी बिक जाता है। क्योंकि वास्तु के अनुसार वायव्य कोण चन्द्र देव की दिशा मानी जाती है। और इस दिशा में वायु तत्व की प्रधानता होती है। इसलिए तैयार माल वायु के वेग की तरह मार्केट से सीधा ग्राहक तक पहुंचता है। और नये आर्डर की मांग बढ़ती है।
  • फैक्ट्री में मशीनों की रिपेरिंग करने की व्यवस्था (कार्यशाला) पश्चिम में स्थापित करना चाहिए। क्योंकि वास्तु अनुसार पश्चिम दिशा शनिदेव की होती है। और शनिदेव कलपुर्जे और उनकी मरम्मत इत्यादि पर उनका अधिकार होता है। इसलिए यदि फैक्ट्री की पश्चिम दिशा में मशीन रिपेरिंग रुम है। तो यह कार्य सुचारु रुप से चलता है।
  • यदि आपकी फैक्ट्री में रिसर्च या फिर डेवलपमेंट का भी कार्य होता है। तो रिसर्च व डेबलबमेंट रुम पूर्व दिशा या फिर पश्चिम दिशा में होना चाहिए। क्योंकि पूर्व दिशा में भगवान सूर्य का आधिपत्य रहता है। जो नई-नई योजनाओं के निर्माण करने व उसे लागू करने के लिए अपना प्रभाव प्रदान करते हैं। वहीं पर पश्चिम दिशा में शनि देव का अधिकार होता है। जो कार्य में निरंतर लगे रहने की शाक्ति प्रदान करते है। क्योंकि शोध के लिए धैर्य की बहुत आवश्यकता होती है। और ऐसे में शनि देव धैर्य को प्रदान करने वाले होते है।
  • जिन फैक्ट्रियों में आर्डर पर माल तैयार होता है। तो तैयार माल उत्तर-पश्चिम में रखें। जगह के अभाव में उत्तर-पूर्व में भी रख सकते हैं।
  • जहां माल पहले बनाकर स्टॉक किया जाता हो। वहां पर केवल उत्तर-पश्चिम में ही तैयार माल रखना चाहए।
  • दक्षिण-पश्चिम में रखा माल रुक जाता है या फिर लेट (देरी) से निकलता है।
  • अग्नि कोण में मशीन या स्टॉक, दक्षिण पश्चिम से कम वजन का होना चाहिए।
  • मशीनों का फ्लो पश्चिम से पूर्व की तरफ या दक्षिण से उत्तर की तरफ होना चाहिए।
  • ईशान कोण हमेशा खाली रहना चाहिए। वहां पर dispatch area ( प्रेषण क्षेत्र) बना सकते हैं।
  • ईशान में हल्की मशीन लगा सकते हैं। अगर ईशान से ज्यादा वायुकोण में भारी मशीन हो। वायुकोण से ज्यादा अग्निकोण में भारी मशीन हो और दक्षिण-पश्चिम में सबसे ज्यादा वजन हो।

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)