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फैक्ट्री में मंदिर कहां पर होना चाहिए।

फैक्ट्री में मंदिर कहां पर होना चाहिए?

यह बात सिद्ध हो चुकी है। कि वास्तु एक प्राचीन विज्ञान है। जिसके अंतर्गत किसी भी भूमि पर कुछ सहज सिद्धांतों का आधार लेकर निर्माण कार्य किया जाता है। अथवा निर्माण की व्यवस्था की जाती है। और इस वास्तुपरक निर्माण या व्यवस्था से वहाँ के निवारियों के स्वास्थ्य, सुख-शांति एव समृद्धि में पर्याप्त वृद्धि होती है। कोई भी वास्तुपरक निर्माण उरोक्त बातों के साथ-साथ अन्य निर्माणों की तुलना में प्राकृतिक आघातों को सहने में भी बेहतर साबित होता है। यही कारण है कि वास्तु सिद्धांतों के आधार पर निर्मित अनेक प्राचीन इमारतें और मंदिर आज भी पर्याप्त उत्तम स्थिति में मौजूत हैं। दरअसल, वास्तुविज्ञान में पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति, विभिन्न ग्रहादि के विकिरण, और रशिमयाँ, वायु , दिशाएँ इत्यादि को इस प्रकार संतुलित किया गया है। कि वास्तुपरक निर्माण किसी को भी उपरोक्त फल अति सहजता से प्रदान करता है।

वास्तु की महत्ता को आज के जनमानस ने पहचाना है और इसीलिए इस लुप्तप्राय विज्ञान के प्रति जनसामान्य में रुचि जाग्रत हुई है। आज लोग फैक्ट्री के निर्माण के समय वास्तु सिद्धांतों का आधार लेने लगे है। यही नहीं, फैक्ट्री में भी वास्तु नियमों के अनुसार, इस विज्ञान पर आस्था रखनेवाले आवश्यक परिवर्तन करते देखे जा सकते हैं।

मंदिर वास्तु में कुछ अति सरल वास्तु सिद्धांतों को जनलाभार्य प्रेषित किया जा रहा है। अति सामान्य सी दिखाई देनेवाली इन बातों में कितना प्रभाव है। यह तो फैक्ट्री का मालिक समझ सकता है।

फैक्ट्री चाहे छोटी हो या फिर बड़ी, एक मंदिर (देवस्थान) का होना नितांत अनिवार्य है। और यह देव स्थान सदैव उत्तर-पूर्व कोण पर होना चाहिए। इस कोण को ईशान कोण भी कहते हैं।

फैक्ट्री में बने मंदिर के लिए क्या हैं वास्तु के नियम -

वास्तु के अनुसार मंदिर का अर्थ होता है। मन से दूर कोई ऐसा पवित्र स्थान जहां पर प्रवेश करने से हमारा मन सकारात्मक ऊर्जा से पूरा भर जाता है। क्योंकि प्राचीन काल से लेकर देवस्थलों (मंदिर, धार्मिक स्थलों) का निर्माण वास्तुपरक से ही होता आया है और भी आगे भी होगा। फैक्ट्री में मंदिर बनाने से पूर्व बहुत सारे वास्तु की बातों का ध्यान रखना चाहिए।

  • फैक्ट्री में मंदिर मुख्य रुप से ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा में बनाना चाहिए।
  • मंदिर का निर्माण नैऋत्य कोण कोण में न करें।
  • फैक्ट्री के मंदिर के आग्नेय भाग में तेल या फिर घी का दीपक जलावें।
  • प्राचीन मंदिर की कोई भी मूर्ति-खंडित व प्राचीन कलाकृति मंदिर में नही लगाना चाहिए।
  • मंदिर के दरवाजे दो भाग में हों, लोहे के दरवाजे का निर्माण नहीं करें।
  • अपने आप खुलने व बंद होने वाले तथा स्पिंग का प्रयोग फैक्ट्री मंदिर के दरवाजे में नहीं करें।
  • मंदिर में भगवान के सामने आलमारी नहीं रखे।
  • मंदिर के ईशान कोण को भारी न बनावें। उस स्थान पर चबूतरे का निर्माण नहीं करें। आसन या चटाई पर बैठकर पूजा करें।
  • पूजा करने वालों का मुँह पूर्व या उत्तर में तथा देवी-देवताओं का पश्चिम या पूर्व में रखें।
  • फैक्ट्री के मंदिर में यज्ञ मण्डप (अग्निकुण्ड) का निर्माण आग्नेय दक्षिण-पश्चिम भाग में करना चाहिए।
  • फैक्ट्री के मंदिर के किसी भी कोने में देवी-देवताओं की आकृति व रचन त्रिकोणी न हो।
  • फैक्ट्री मंदिर आप-पास शौचालय नही होना चाहिए।
  • दीवार से सटाकर किसी भी देवी-देवता की मूर्ति न लगावें, एक-दो इंच जगह अवश्य छोड़ दें।
  • फैक्ट्री मंदिर में हिंसक व अशुभ पशु-पक्षियों के चित्र, महाभारत के चित्र व वास्तु पुरुष के चित्र आदि न लगावें।
  • पूर्व में भी मंदिर शुभ रहता है।
  • फैक्ट्री में बहुत बड़ा मंदिर नही बनाना चाहिए।
  • मंदिर कि ऊँचाई शेड़ से छोटी ही होनी चाहिए।
  • शिव जी (लिंग) हमेशा एकान्त चाहते हैं। अतः शिवलिंग फैक्ट्री में नही लगाना चाहिए।
  • गणेश, दुर्गा, हनुमान जी ये श्रेष्ठ रहते हैं।
  • मंदिर में नियमित पूजा पाठ तथा भोज की व्यवस्था रहनी चाहिए।
  • मंदिर फैक्ट्री के मुख्य द्वार के सामने भी बनाया जा सकता है।

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)