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जानें दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और ज्योतिष महत्व

जानें दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और ज्योतिष महत्व

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दिवाली का त्यौहार प्रत्येक वर्ष शरद ऋतु में कार्तिक मास की अमावस्या तिथि के दिन पूरे भारत देश के साथ-साथ विदेशों में भी मनाया जाने वाला एक भारतीय त्यौहार है। दीपों के त्यौहार दीपावली के नाम में ही उसके होने का अर्थ निहित है। दीपावली अर्थात प्रकाश का त्यौहार या दीपों को पंक्ति बद्ध करके उनको प्रज्वलित करते हैं। दिवाली का त्यौहार अंधकार को दूर कर प्रकाश को फैलाता का संदेश जन-जन तक पहुचता है।

दिवाली के त्यौहार को भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी जी का भी संबंध है और विजयदशमी के दिन रावण वध के बाद भगवान श्री राम अपनी अयोध्या नगरी माता सीता को वापस लेकर आये है, तो उनके स्वागत में अयोध्या वासियों सहित संपूर्ण आर्यावर्त दीपकों को जलाकर प्रकाश उत्सव के माध्यम से श्री राम जी का स्वागत किया गया था, यहीं से दिवाली की शुरुआत भी मानी जाती है।

दिवाली के त्यौहार के संदर्भ में पुराणों के कथा का वर्णन मिलता है, कि कार्तिक मास की अमावस्या की रात्रि को स्वयं भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी जी के साथ इस पृथ्वी लोक में घर-घर विचरण करते है, जिसके लिए उनकी प्रसन्नता के लिए भी सभी लोग दीप प्रज्वलित करते हैं। दिवाली में दीप प्रज्वलन का प्रचलन भी इसलिए है , कि माता लक्ष्मी जी को स्वच्छता और प्रकाश दोनों ही अतिप्रिय हैं। इसलिए दिवाली में विशेष साफ-सफाई का भी विधान हैं। माता लक्ष्मी को चंचलता का भी प्रतीक माना गया है, इसलिए दिवाली के त्यौहार में ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुछ नियमों और मुहूर्त का पालन करना अनिवार्य होता है, तभी दिवाली पर्व में लक्ष्मी पूजन के विशेष फल प्राप्त होते है और माता लक्ष्मी की अपार कृपा परिवार पर बनी रहती है।

दिवाली के त्यौहार में लक्ष्मी पूजन में रखें वास्तु और ज्योतिष शास्त्रों के इन विशेष नियमों का ध्यान :

  • देवी लक्ष्मी का पूजन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त) में किया जाना चाहिए। प्रदोष काल के दौरान स्थिर लग्न में पूजन करना सर्वोत्तम माना गया है। इस दौरान जब वृषभ, सिंह, वृश्चिक और कुंभ राशि लग्न में उदित हों तब माता लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। क्योंकि ये चारों राशि स्थिर स्वभाव की होती हैं। मान्यता है कि अगर स्थिर लग्न के समय पूजा की जाये तो माता लक्ष्मी अंश रूप में घर में ठहर जाती है।
  • पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और लाल कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी जी और गणेश जी की मूर्ति रखें या दीवार पर लक्ष्मी जी का चित्र लगाएं। चौकी के पास जल से भरा एक कलश रखें।
  • दीपावली पर पूर्वजों का पूजन करें और धूप व भोग अर्पित करें।
  • माता लक्ष्मी का सफाई बहुत ही ज्यादा पसंद है, इसलिए इसका ध्यान दें और घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में गंगाजल छिड़क कर लक्ष्मी जी का पूजन मुहूर्त अनुसार करें।
  • दिवाली के दिन पूजा करने वाले (साधक) का मुंह हमेशा उत्तर दिशा की ओर ही होना चाहिए क्योंकि यह धन के देवता कुबेर की दिशा मानी गई है।
  • दिवाली के दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी के साथ-साथ धन के देवता कुबेर ,विद्या की देवी माता सरस्वती और बुद्धि के देवता प्रथम पूज्य गणेश जी का पूजन करना बिल्कुल भी न भूलें।
  • वास्तु और ज्योतिष के मत के अनुसार दिवाली पूजन के दिन जिस तस्वीर का आप पूजन कर रहें हैं, उसमें माता लक्ष्मी की फोटो में स्थिति ऐसी हो, कि लक्ष्मी जी के दाहिने तरफ गणेश जी और बायीं ओर सरस्वती जी विराजमान हो।
  • दिवाली के दिन माँ लक्ष्मी जी की इसी मुद्रा की तस्वीर या मूर्ति की पूजा करें तो अपने आसन में विराजमान हो। लक्ष्मी जी की खड़ी मुद्रा की तस्वीर की पूजा करना वर्जित है, क्योंकि यह उनके जाने का प्रतीक दर्शाती है।
  • दिवाली पूजन के कलश को लक्ष्मी माँ की चौकी के नजदीक रखें और माता लक्ष्मी की पास अक्षत (चावल) रखें।
  • माता लक्ष्मी के दोनों तरफ दो दीपक प्रज्वलित करें ।

जानें क्या है दिवाली के त्यौहार का ज्योतिष में महत्व

सनातन संस्कृति में होने वाले प्रत्येक पर्व का ज्योतिष महत्व होता है और इन त्योहारों पर ज्योतिष के ग्रहों, नक्षत्रों और दिशाओं के योग संपूर्ण जनमानस के लिए शुभ प्राप्त करने वाले होते हैं। हिंदू समाज में दिवाली का समय किसी भी कार्य के शुभारंभ और किसी वस्तु की खरीदी के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस विचार के पीछे ज्योतिष महत्व है। दरअसल दीपावली के आसपास सूर्य और चंद्रमा तुला राशि में स्वाति नक्षत्र में स्थित होते हैं। सूर्य और चंद्रमा की यह स्थिति शुभ और उत्तम फल देने वाली होती है। तुला एक संतुलित भाव रखने वाली राशि है। यह राशि न्याय और अपक्षपात का प्रतिनिधित्व करती है। तुला राशि के स्वामी शुक्र जो कि स्वयं सौहार्द, भाईचारे, आपसी सद्भाव और सम्मान के कारक हैं। इन गुणों की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों का तुला राशि में स्थित होना एक सुखद व शुभ संयोग होता है।

दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त

प्रत्येक पूजा में भारतीय पंचांग के अनुसार मुहूर्त का विशेष महत्व होता है, और शुभ मुहूर्त में किए गए कार्यों में शीघ्र सफलता प्राप्ति की अधिक संभावना होती है।

भारतीय हिन्दू पंचांग के अनुसार वर्ष 2022 में दिवाली 24 अक्टूबर और 25 अक्टूबर दो तिथियों में पड़ रही है। परंतु ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण और अमावस्या तिथि प्रदोष काल के पूर्व ही समाप्त हो जा रही है। इसलिए दिवाली का पूजन 24 अक्टूबर के प्रदोष काल में ही पूरे देश में मनाई जायेगी।

ज्योतिष के अनुसार 23 अक्टूबर को त्रयोदशी (धनतेरस) की तिथि शाम 6:04 बजे तक रहेगी। उसके उपरांत चतुर्दशी तिथि की शुरुआत हो जायेगी, जो अगले दिन सोमवार को शाम 5:28 बजे तक समाप्त होगी। इसके बाद अमावस्या तिथि की शुरुआत होगी, जो 25 अक्टूबर को मंगलवार के दिन शाम 4:19 पर प्रदोष काल के पूर्व ही समाप्त हो जायेगी। ऐसे में शास्त्रीय विधान के अनुसार ज्योतिष विद्वानों का मत है, कि दिवाली पूजन अमावस्या तिथि के प्रदोष काल में सबसे उत्तम है।

वर्ष 2022 में 24 अक्टूबर को दिवाली का शुभ मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त - शाम 06:54 से रात्रि 8:16 बजे तक
दिवाली पूजन का कुल समय- 1 घंटा 21 मिनट
दिवाली पूजन में प्रदोष काल - 05:43 से 08:16 तक
वृषभ काल - 06:54 से 08:50

वास्तु विद् -रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)