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ऋषि पंचमी का पर्व किन ऋषियों से जुड़ा है और जानें इसके महत्व व लाभ

ऋषि पंचमी का पर्व किन ऋषियों से जुड़ा है और जानें इसके महत्व व लाभ

हिन्दू धर्म में व्रतों और पर्वों का विशेष महत्व बताया गया है। व्रतों एवं त्यौहारों को सनातन धर्म के अनुसार नियम पूर्वक करने पर प्राणी मात्र को विशेष कर्म फलों की प्राप्ति होती और जाने-अनजाने में किए गये पापों से मुक्ति से मिलती है। व्रत को श्रद्धा एवं निष्ठा के साथ करने पर पापों का प्राश्चित भी होता जाता है। व्रतों के पालन करने से आध्यत्मिक और मानसिक शांति की अनुभूति होती है और स्वास्थ्य में एक बड़ा बदलाव भी देखने को मिलता है।

भारत में व्रतों एवं पर्वों का सर्वव्यापी प्रचलन है, जिसको सभी श्रेणी के नर-नारी एक नियम साधना के अनुसार पालन करते हैं और इन्हीं व्रतों के माध्यम से अपने अभीष्ट मनोकामना की प्राप्ति करते हैं। मनुष्यों के कल्याण के लिए व्रत स्वर्ग के सोपान अथवा संसार-सागर से तार देने वाली प्रत्यक्ष नौका के सामान हैं।

आज की हमारी चर्चा आधारित है ऋषि पंचमी व्रत पर, कि आखिर क्यों ऋषि पंचमी का पर्व मनाया जाता है और ऋषि पंचमी का संबंध किन ऋषियों से सबंधित है, इसके करने से कौन-कौन से पुण्य कर्मों की प्राप्ति होती है, इस व्रत में देवी-देवताओं की नहीं बल्कि सप्त ऋषियों की पूजा का विधान होता है औऱ सप्त ऋषि प्रशन्न होकर ऋषि ऋण से मुक्ति देते है।

हिन्दु पंचांग के अनुसार प्रति वर्ष ऋषि पंचमी का व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है या फिर यूं कहें कि गणेश चतुर्थी के अगले दिन ऋषि पंचमी होती है। वर्ष 2022 में ऋषि पंचमी का पर्व 1 सितम्बर दिन गुरुवार को मनाया जाएगा। यह पर्व पूर्ण रुप से सप्त ऋषियों को समर्पित है, जिसे प्रतिवर्ष पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।

ऋषि पंचमी का पर्व निम्नलिखित सप्त ऋषियों को समर्पित है ?

कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोय गौतम:।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋ षय: स्मृता:।।
गृ•न्त्व?ध्र्य मया दत्तं तुष्टा भवतु मे सदा।।

  • कश्यप ऋषि
  • अत्रि ऋषि
  • भारद्वाज ऋषि
  • विश्वामित्र ऋषि
  • गौतम ऋषि
  • जमदग्नि ऋषि
  • वशिष्ठ ऋषि

क्यों मनाया जाता है ऋषि पंचमी का पर्व ?

सप्त ऋषियों के सम्मान में महिला एवं पुरुष ऋषि पंचमी के व्रत को पूरे विधि-विधान के साथ अनुशरण करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार वैसे तो ऋषि पंचमी का व्रत विशेष रुप से महिलाओं के लिए है, क्योंकि भविष्य पुराण में वर्णन किया गया है, कि जब महिलाओं के द्वारा जाने या फिर अनजाने में मासिक धर्म के दौरान धार्मिक कार्यों में संलग्न या फिर देव प्रतिमा, देव स्थान को स्पर्श जैसे कार्य हो जाते है, तो इन दोषों की मुक्ति के लिए ऋषि पंचमी का व्रत जरुर करना चाहिए, ताकि उन दोषों से मुक्ति मिल सके।

ऋषि पंचमी की कथा

ऋषि पंचमी की कथा का वर्णन भविष्य पुराण में है, जिसमें बताया गया है, सतयुग में विदर्भ (आज का महाराष्ट्र) के एक ब्रह्माण उत्तक अपनी धर्मपत्नी सुशीला के साथ खुशी-खुशी धर्मपरायण जीवन व्यतीत करते थे। उनकी दो संताने थी, जिसमें एक पुत्र और पुत्री थी। समय बीतता गया और उत्तक की पुत्री विवाह के योग्य हुई, तब उन ब्रह्माण ने योग्य वर ढूंढ कर उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह संपन्न कर दिया। परंतु कुछ समय पश्चात उत्तक के दामाद की मृत्यु हो गई और उसकी पुत्री विधवा हो गई। ससुराल में बेटी का सहारा कोई न बचा इस कारण से वह अपने मायके में पिता के साथ ही जीवन काट रही थी। तभी एक दिन, जब विधवा बेटी रात में रो रही थी, तो अचानक से उसकी माँ सुशील की आँख खुली तो माँ देखती है, कि उनकी बेटी के शरीर में कीड़े लिपटे हुए और उसकी बेटी उन कीड़ों की बीच तडफड़ा रही है। उत्तक की धर्म पत्नी सुशीला से अपनी बेटी की यह दुर्दशा देखी न गई और तुरंत नींद से अपने पति को जगा कर बेटी की इस दशा के बारे में बताया और इसका कारण भी पूछा। चूकि उत्तक ब्रह्माण बहुत ही अच्छे विद्धान थे, तब उन्होंने अपनी ध्यान साधना से ध्यान लगाकर देखा, तो पता चला कि पूर्व जन्म (पिछले जन्म) में उनकी बेटी ने राजस्वला (मासिक धर्म) के समय पूजा से संबंधित सामग्री को स्पर्श कर लिया था और इस पाप की मुक्ति के लिए उसने ऋषि पंचमी का व्रत भी नही किया था। इस कारण से इस जन्म में यह इस दुर्दशा के लिए जिम्मेदार है। तब उत्तक की धर्मपत्नी अपने पति से पुत्री की मुक्ति और कष्ट निवारण के लिए उपाय पूछाती है।

उपाय बताते हुए उत्तक ब्रह्माण कहतें है, कि बेटी का उद्धार और सौभाग्य की प्राप्ति ऋषि पंचमी के व्रत से ही होगी, इसलिए पूरे विधि-विधान और श्रद्धा भाव के साथ सप्त ऋषियों का ध्यान कर उनका ही अर्चन वंदन करे। वही इसकी बाधा का निवारण करेंगे। पिता द्वारा बताएं गये व्रत का पुत्री पूरे नियम पूर्वक पालन करती है और कष्टों से मुक्ति पा लेती है।

ऋषि पंचमी व्रत मुहूर्त वर्ष 2022

वर्ष 2022 में ऋषि पंचमी तिथि का प्रारंभ 31 अगस्त 2022 को 3:22 अपराह्न से 1 सितम्बर 2022 को 2:49 अपराह्न तक है। ऐसे स्थिति में हिन्दू पंचांग के अनुसार हिन्दू धर्म के सभी तीज, त्यौहार व पर्व उदया तिथि को आधार मानकर मनाए जाते हैं। तो ऋषि पंचमी का व्रत 1 सितम्बर को मनाया जायेगा और ऋषि पंचमी के पूजा का विशेष शुभ मुहूर्त 1 सितम्बर को सुबह 11:05 से लेकर 1:37 तकर रहेगा।

वास्तु विद् - रविद्र दाधीच (को-फाउंडर वास्तुआर्ट)